शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धाकारापाहां ॥ हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम । वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदां ॥

 शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धाकारापाहां ॥ हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम । वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदां ॥

 भावार्थ :

शुक्ल वर्ण वाली, सम्पूर्ण जगत में व्याप्त, महाशक्ति ब्रह्मस्वरूपीणी, आदिशक्ति परब्रहम के विषय में किये गये विचार एवम चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से मुक्त करने वाली, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली, हाथो में वीणा,स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजित बुध्दि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, माँ भगवती शारदा को मैं वंदन करती हूँ ।