चारदिवारी की दुनिया
हाँ मैनें चारदिवारी की दुनिया में साल गुज़ारे है।
कुछ हँसकर कुछ रोकर मैनें हर हाल गुज़ारे है।।
हाँ, चारदीवारी की दुनिया में साल गुज़ारे है।
रोकर आए थे उस दिन की श्राप लगे इस धरती को,
रोज प्रार्थना करते थे ,को..ई रोके इस भरती को।
शुरु शुरु में सुबक सुबक के थोड़े हम भी रोए हैं,
डर के डर से एक बेड पे दो-दो बच्चे सोए हैं।
सुबह उठे और एक प्रार्थना आ..ज मिलने आजाए,
गेट पे बैठे रोड ताकते, का..श मिलने आजाए।
आजाये नम्बर बस जल्दी टेलीफोन की लाईन में
इतने सिक्के लिए हाथ में जाते दिखते फाईन में।
अब के ज़िगरी यारों से भी पहले बहुत झगड़ते थे,
तुने मेरी पेंसिल लेली, इसी बात पर लड़ते थे🤣।
मेरा बक्सा, मेरी खवडी तुझको बाटूँ? जा रे जा,
मेरे पापा लाए मेरे, तुझसे माँगू? जा रे जा।
किस्से सभी सुनाते थे कुछ सच्चे कुछ अफसानों से,
पास हाउस में पायल बजती सुनी है अपने कानों से।
भूत भी देखे हैं हमने, बस उन कब्रो के इधर उधर
बेर तोड़ने की खातिर ना जाने घूमे किधर किधर।
और किधर ना घूमे हम पोथी पन्नों को गढ़ने को,
कभी पेड़ पर कभी स्कूल के पीछे घूमे पढ़ने को।
छोटे कदम लिए बढ़ते, पढ़ते थे छोटे हाथों से,
सिर्फ परीक्षा के दिन पहले नम्बर लाते रातों से।
नम्बर लाए पास हुए और रोना धोना बन्द हुआ,
गेट पे बैठे राह ताकना धीरे धीरे बन्द हुआ।
गिन गिन कर सिक्के हमने टक्साल गुज़ारे है
हाँ हमने चारदिवारी की दुनिया में साल गुज़ारे हैं।
मिसकॉलों से लड़ने वाली वो जंगें भी जीत गए,
टेलिफोन के डिब्बे में जाते सिक्के भी बीत गए।
बन्द हुआ अब खवडी खाना सिर्फ एक ही बक्से से
हाथ बनाने लगे खूफिया जगह ढूंढकर नक्शे से
रोज प्रार्थना अब करते की आ..ज बारिश आजाए,
बाहर निकल कर बादल ताके, का..श बारिश आजाए।
अब ज़िगरी यारों की थाली पर भी अपना ही हक था
मेस की लाईन मे आगे लगना भी अब तो अपना हक था
रीते गए, चार पेनों को जेब में भर के लाए हैं 😅।
उन्ही चार को अगली सुबह अनजाने दे आए हैं।
दे आए झाडू की ड्यूटी किसी और के कंधो पर
बैग छेड़ती लड़की , विश्वाश था अपने बन्दों पर।
तब शुरु हुआ वो दौर जहाँ हर रोज शिकायत होती थी।
हर रोज लड़ाई होती थी हर रोज बगावत होती थी।
इन्ही क्रान्ति के किस्सों ने हमको घर तक मशहूर किया,
और हमने भी सारे किस्सों को विंग विंग मशहूर किया।
बेंचपार्टनर के भी बिस्कुट गीले करके खाए हैं,
वी पी रुम से हेरा फेरी करके पैकेट लाये हैं।
खूब लगाई है ठोकर पत्थर को गेंद बनाकर के,
स्नेक्स की डबलिंग मारी है लाईन में पीछे जाकर के।
मारे हैं कंकर भी तब सड़कों से अपने मित्रों पर
मूछें भी खूब बनाई हमने खूब किताबी चित्रों पर।
और ये जीवन गाते गाते इक दिन वो भी आया था।
जिस दिन हमें बिछुड़ना था
हाँ इक दिन वो भी आया था।
खड़े रहे हम मेन गेट पर सोचा फिर चले जाएँ
फिर से वही सिक्सथ कक्षा से हँसते हुए गीत गाएँ।
उस दिन भी आँखे भीगी थी कुछ लम्हों के खोने से
नजरें कैद करे तस्वीरें, दुनिया के इस कोने से
रोज बदलती तस्वीरों में थोड़ी हिस्सेदारी थी,
उस रंगीन सी रफ कॉपी में थोड़ी इंक हमारी थी।
रचियेता - Chinmesh Vaishnav
भुतपुर्व छात्र - जवाहर नवोदय विद्यालय Hurda, Bhilwara,(2010-17)
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