Poem on navodaya by Anmol Kumar मै नवोदय हूँ !!! (indilona)

मै नवोदय हूँ !!!

हाँ,सही सुना आपने!

आपका नवोदय!

शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर मेरा बसेरा है!

कुछ पहाड़ी;कुछ मैदानी;
मैने देश का भविष्य पलते देखा है अपने आँगन में गिरते-उठते; छोटे-छोटे मासूम चेहरे पर अध-विकसित मूँछ-दाड़ी आते देखा है मैने!
मेरी ही कक्षाओं में तुमने वो समीकरण हल किये है जो आज भागती ज़िन्दगी में बेमतलब-से लग रहे होंगे;लेकिन जरुरी थे वो!
मेरे ही प्रांगण में एकता और अखंडता की वो प्रार्थना दोहराते थे तुम रोज़ाना। आज के इस कटु माहौल में बड़ी काम आती होगी वो पंक्तिया!
❤️ तू गिर जाता था जब फुटबॉल को लात मारते हुए,तो घुटने की उस चोट पर मेरी मिट्टी को लगाकर फिर से दौड़ पड़ता था, इस विश्वास के साथ की अब कुछ नही होने वाला मुझे। क्या वो जज़्बा अभी भी बरक़रार नही तुझमे ?? 🤔😴☝️☝️
जरूर होगा। क्यों न हो?👌👍
आखिर उस मिट्टी का अंश बाकी तो होगा ना तुझमे!👍
मेरी ही गलियों में तूने उसे पहली बार देखा था सामने से आते हुए और वो नज़रे झुका के तेरे पास से गुजर गई थी,तब मेरी ही दीवालों पे तूने उसका नाम चाक से उकेरा था;भूल गया तू?😴
क्या वो अहसास और प्यार आज भी ज़िंदा है तेरे दिल में ?? 🤔🤔😒
यक़ीनन होगा!!
तू हर इतवार को मेरी सीमाओं को फांद कर चला जाता था मुझसे दूर!
आज़ाद होकर ऐसा इठलाता था जैसे कोई परिंदा पिंजरे से आज़ाद हुआ; लेकिन साँझ को फिर तू ही तो लौट आता था, दिनभर की मस्ती करके और दुबक के सो जाता था मेरे आँचल में!❤️
एक माँ के लिए इससे ज्यादा ख़ुशी क्या हो सकती है की उसके बेटे दुनिया में अपना नाम रोशन करें!
poem on navodaya

रचियेता -Anmol Kumar
भुतपुर्व छात्र - जवाहर नवोदय विद्यालय (1999-2003)Barwa Sagar, Uttar Pradesh
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